कविता संग्रह >> वाह रे पवनपूत वाह रे पवनपूतअसविन्द द्विवेदी
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पवनपुत्र हनुमान जी पर अवधी खण्ड काव्य
मंगल कामना
अवधी के कवि श्री असविन्द कुमार द्विवेदी का 'वाह रे पवनपूत' की पांडुलिपि पढ़ने का अवसर मिला। अपने ग्रामीणांचल की बोली का ऐसा प्रयोग कविता के माध्यम से कभी-कभी देखने और सुनने को मिलता है। रचनाकार ने जिस भावभूमि को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, सराहनीय है। श्री असविन्द जी को अनेकानेक कवि सम्मेलनों में सुनने का अवसर मिला है। वे अवधी की कविता को जब अपनी ओजमयी वाणी में पढ़ते हैं तो श्रोता उस क्षण अपने को उनकी कविता के साथ प्रवाहित होता महसूस करता है। यह काव्य जब प्रकाशित होकर आप के बीच में आयेगा तो आप श्री असविन्द जी के प्रयास की बार-बार चर्चा करेंगे।
आपका कविवर आगे उत्तरोत्तर इसी तरह बढ़ता रहे, यही मंगल कामना है।
डॉ. मथुरा सिंह
प्राचार्य रणवीर रणंजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
अमेठी, सुल्तानपुर
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